Lok Sabha Election Result के दिन मंगलवार को शेयर बाजार में सुनामी आई और सेंसेक्स (Sensex) 6000 अंक का गोता लगा गया. निफ्टी (Nifty) में भी जोरदार 1900 अंकों तक की गिरावट आई. मार्केट में इस गिरावट के पीछे कारण कई हैं, जिनमें कुछ डर भी शामिल हैं.
लोकसभा चुनाव के नतीजों (Election Results) का आना जारी है और जैसे-जैसे आंकड़े सामने आते जा रहे हैं, शेयर बाजार में आई बड़ी गिरावट भी कम होती जा रही है. मार्केट खुलने के साथ ही मंगलवार को Stock Market Crash हो गया था और दोपहर 12 बजे तक तो सेंसेक्स 6000, जबकि निफ्टी 1900 अंक तक बिखर गया. हालांकि, इसके बाद बाजार ने करीब 2000 अंकों की रिकवरी की. इस बीच सबसे बड़ा सवाल ये है कि लोकसभा इलेक्शन के रिजल्ट आने के बाद अचानक शेयर बाजार में ये सुनामी क्यों आई, आखिर चुनाव नतीजों में PM Modi के नेतृत्व में एनडीए (NDA) की वापसी की मुनादी के बावजूद बाजार क्यों लुढ़का और ऐसा कौन सा डर मार्केट को सता रहा है?
झटके में निवेशकों के 45 लाख करोड़ डूबे
इस डर का कारण जानने से पहले शेयर मार्केट (Share Market) में आज हुए कारोबार की बात कर लेते हैं. तो बता दें कि सुबह 9.15 बजे पर बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज का 30 शेयरों वाला सेंसेक्स (Sensex) 1700 अंक, जबकि नेशनल स्टॉक एक्सचेंज का निफ्टी 400 अंक फिसलकर खुला था. फिर जैसे-जैसे चुनाव के नतीजे (Election Results) आने शुरू हुए, बाजार बिखरता चला गया. दोपहर के 12 बजे के आस-पास सेंसेक्स 6000 अंक तक टूट गया था और निफ्टी भी 1900 अंक तक फिसल गया था. हालांकि, मार्केट क्लोज होने तक इसमें रिकवरी देखने को मिली और सेंसेक्स में 4389.73 अंक या 5.74 फीसदी गिरकर 72,079.05 पर बंद हुआ और निफ्टी में 1379.40 या 5.93 फीसदी टूटकर 21,884.50 के लेवल पर क्लोज हुआ. शेयर बाजार में आई इस सुनामी में Stock Market Investors के 45 लाख करोड़ रुपये डूब गए.
क्या सहयोगियों के साथ बनानी पड़ेगी सरकार?
चुनावी नतीजों के अब तक के रुझान देखें, तो भले ही अबकी बार एनडीए 400 पार होती नहीं दिख रही, लेकिन फिर भी सत्ता में तीसरी बार उसकी वापसी लगभग तय मानी जा रही है. खबर लिखे जाने तक NDA को 294 सीटें मिलती नजर आ रही थीं, जबकि BJP की अनुमानित सीटों का आंकड़ा 244 के करीब चल रहा है. यानी इस बार पार्टी को स्पष्ट बहुमत मिलता दिखाई नहीं दे रहा है और बीजेपी को गठबंधन के सहयोगी दलों की मदद से सरकार बनानी होगी. यही शेयर बाजार का भी सबसे बड़ा डर है.
दरअसल, Share Market के इतिहास को देखें, तो देश में स्पष्ट बहुमत की सरकार होने के दौरान इसने शानदार ग्रोथ दर्ज की है. उन सरकारों की तुलना में जो सहयोगियों को साथ लेकर सत्ता में आई हैं. Sensex-Nifty में बीते 10 साल के आंकड़े इस बात को साफ कर देते हैं.
स्पष्ट बहुमत की सरकार में जबरदस्त ग्रोथ
दरअसल, साल 2014 में BJP को स्पष्ट बहुमत मिला और उसके बाद साल 2019 में भी जोरदार जीत के साथ बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर सत्ता में आई. इन 10 सालों के BSE Sensex में 50000 अंकों से ज्यादा का उछाल आया है. 2014 में सेंसेक्स 21,222 के स्तर पर ट्रेड कर रहा था, लेकिन स्पष्ट बहुमत वाली मोदी सरकार के कार्यकाल में 76000 के आंकड़े को पार करते हुए इतिहास रच दिया. यही नहीं बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज ने भी इतिहास रचा. इसी साल 21 मई को BSE Market Cap 5 ट्रिलियन डॉलर के स्तर तक को छू गया और भारतीय शेयर बाजार दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा बाजार बन गया.
इकोनॉमी की रफ्तार का भी साथ
दरअसल, साफ शब्दों में कहें तो शेयर बाजार के सेंटीमेंट पर कई कारक असर डालते हैं. इनमें एक जहां स्पष्ट बहुमत की सरकार के साथ ही इकोनॉमी की दिशा में सरकार द्वारा उठाए गए बड़े कदम भी शामिल हैं. गौरतलब है कि इंडियन इकोनॉमी पिछले 10 साल में दुनिया की सबसे तेजी से आगे बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था बनकर उभरी है और तेज रफ्तार के साथ ये विश्व की पांचवी सबसे बड़ी इकोनॉमी भी बनी है. अब यहां भी बाजार के डर से जुड़ी एक खास बात है. वो ये कि स्पष्ट बहुमत वाली सरकार को कड़े फैसले लेने और उन्हें लागू करने के लिए किसी दवाब का सामना नहीं करना होता है. वहीं इससे उलट गठबंधन वाली सरकार को ऐसे फैसलों के लिए सहयोगियों की रजामंदी की जरूरत होती है और इसमें कई बाद उसे अपने फैसले बदलने तक पड़ जाते हैं.
उदाहरण से समझें आखिर क्यों डर रहा शेयर बाजार?
इस पूरे मामले में लोकसभा चुनावों के दौरान आजतक के साथ खास बातचीत में प्रशांत किशोर (PK) द्वारा मोदी सरकार के 100 दिन के एजेंडे को लेकर जताए गए अनुमान से समझा जा सकता है. पीके ने कहा था कि तीसरी बार सत्ता में वापसी करने के बाद Modi Govt सबसे पहला काम राज्यों की फाइनेंशियल ऑटोनोमी में कटौती करने का काम कर सकती है. यानी केंद्र कुछ ऐसे फैसले ले सकता है, जिससे राज्यों के रेवेन्यू पर असर पड़ सकता है. इसके लिए सबसे बड़ा कदम पेट्रोल-डीजल (Petrol-Diesel) को जीएसटी के दायरे में लाया जा सकता है. अगर ऐसा होता है, तो फिर राज्यों के रेवेन्यू पर असर पड़ेगा.
दरअसल, राज्यों के पास राजस्व के तीन सबसे प्रमुख स्रोत हैं और इनमें पेट्रोलियम पदार्थों के अलावा शराब और भूमि शामिल हैं. अगर, पेट्रोल-डीजल के जीएसटी (Petrol-Diesel GST) के दायरे में आया, तो राज्यों का वैट खत्म हो जाएगा. हालांकि, ऐसे में जो पैसा राज्यों को पेट्रोलियम पदार्थों पर टैक्स के जरिए सीधे मिल जाता था, अब वो केंद्र के पास जाएगा और राज्यों को वहां से मिलेगा. मतलब साफ है कि अगर देश में स्पष्ट बहुमत वाली सरकार होगी, तो ये संभव होगा, नहीं तो गठबंधन सरकार को अपने सहयोगी राज्यों की रजामंदी लेनी होगी और ऐसा भी हो सकता है कि संबंधित राज्य अपने राजस्व में इस तरह की कटौती के फैसले के पक्ष में न हों.
मतलब शेयर बाजार में मंगलवार को आई गिरावट के पीछे इस तरह के डर को भी एक वजह माना जा सकता है. क्योंकि Exit Poll के अनुमानों में जब बीजेपी को स्पष्ट बहुमत मिलने से जुड़े आंकड़े सामने आए थे, तो अगले ही दिन शेयर बाजार ने भी तूफानी तेजी के साथ इतिहास रच दिया था. लेकिन जैसे ही मंगलवार को चुनावी नतीजों वाले दिन ये अनुमान हकीकत बनते नहीं दिखे, तो Share Market में हाहाकार मच गया.